Sunday, May 19, 2024

गुणकारी “दाडू” का सीजन शुरू, मिल रहे अच्छे दाम

  • गुणकारी “दाडू” का सीजन शुरू, मिल रहे अच्छे दाम

 

आपकी खबर, करसोग। 28 सितंबर

 

“दाडू” पांगणा – करसोग क्षेत्र में बहुतायत में पाया जाता है। दाडू का कंटीला झाड़ीनुमा वृक्ष होता है। दाडू प्रजाति का वृक्ष है। राजकीय मॉडल वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला पांगणा के विज्ञान अध्यापक पुनीत गुप्ता का कहना है कि दाडू का अंग्रेजी नाम वाइल्ड पोमेग्रेनेट तथा बोटेनिकल नाम “पुनिका ग्रेनाटम” है।

अनारदाना में कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, विटामिन ए, सी और ई भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनार में फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, कैल्शियम और लौह तत्व की प्रधानता होती है। इसके साथ ही अनार में एंटीऑक्सिडेंट और एंटीवायरल आदि गुण पाए जाते हैं जो शरीर को अनेक संक्रमणों से बचाते हैं।

अनारदाना के व्यापारियों का कहना है कि पांगणा-करसोग क्षेत्र में पज्याणुु, छण्डयारा, घाड़ी, सोरता, मशोग, परेसी, सीणी-गलयोग, पंचायत, फेगल, मैहप, मझांगण, धार-बेलर, सणस, काण्ढा, काहणु, बगसाड, साओन्गी, बाड़योग, अलसिण्डी, माहौटा, तत्तापानी,  जस्सल, तलैहण, थली, शाकरा, बिन्दला, मगाण, परलोग, चैरा से नान्ज लुहरी तक के सतलुज तटीय तराई वाले न्यूल व आर-पार शिमला-कुल्लू जिला के सीमावर्ती गांव के लोगो की आर्थिकी का मजबूत साधन है।

आजकल एक किलोग्राम सूर्ख लाल अनारदाना घर द्वार पर ही तीन सौ से पांच सौ रूपये तक बिक रहा है। होल सेलर से इस अनारदाना को पतंजलि, डाबर,एम डी एच,एवरेस्ट जैसी अनेक बड़ी-बड़ी कंपनियां और पांच सितारा होटल ऊंचे दाम पर खरीदते हैं। अनारदाना के लाल अपार औषधीय गुणों के कारण दाडू को जंगलों व चरागाह से घर लाकर इसके मणियों के समान और लाल कान्ति वाले बीजों को निकालने और जूट की बोरियो पर सूखाकर बेचने का कार्य आजकल जोर से चल रहा है।

दाडू के ये सुखाए हुए लाल बीज अनारदाना के रूप मे जाने जाते है। इनका स्वाद खट्टा मीठा होता है। जहां वर्ष भर इसका प्रयोग हर घर मे चटनी के रूप मे होता है वही अनारदाना औषधी के रूप मे “दाड़ीमाष्टक चूर्ण” का मुख्य घटक है। पज्याणु गांव के रमेश शास्त्री का कहना है कि दाडु का वृक्ष धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र माना जाता है। पांगणा-सुकेत क्षेत्र मे सूखे दाडू का प्रयोग मासानुमासिक त्यौहार मे किया जाता है।

विवाह के अवसर पर चतुर्थी क्रम (रतैई) में पति-पत्नी दाडू के पौधे की पूजा कर सात बार इस पौधे की परिक्रमा करते है। पितृ कर्मों में भी दाडू का प्रयोग पूजा कार्य मे किया जाता है।होम,आहुति में दाडू की समिधा और लाल बीजों का प्रयोग किया जाता है। सुभाषपालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा का कहना है कि दाडू पूर्णतः जैविक फल है इसमें पौष्टिक व पाचक तत्वों की मात्रा अधिक होती है।

आयुर्वेद चिकित्सक डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि दाड़िमाष्टक चूर्ण के सेवन से बीमारी पास नही फटकती।आमाति सार, अग्निमान्द्य अरूचि, खांसी, हृदय की पीड़ा, पसली का दर्द, ग्रहणी और गुलाम रोग का नाश होता है। पित प्रधान रोगों मे इसका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। यह सौम्य शीतल रूचि बर्द्धक, पित शामक और कण्ठ शोधक है।

दूषित गैस की उत्पति से कण्ठ मे जलन, खट्टी डकारे, पेट भारी, दस्त की कब्जियत आदि उपद्रवों मे तीन मासा हिग्वाष्टक चूर्ण तक्र या गर्म पानी से लेने पर शीघ्र लाभ होता है। इसी प्रकार दाडिम पुटपाक आदि औषधियों मे भी इसका प्रयोग होता है।

Get in Touch

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related Articles

spot_img

Latest Posts