Search
Close this search box.

सांस्कृतिक महत्व को संजोए हुए है पांगणा के सरही की मलेच्छ बावड़ी

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]
  • सांस्कृतिक महत्व को संजोए हुए है पांगणा के सरही की मलेच्छ बावड़ी

आपकी खबर, पांगणा।

सुकेत को रियासत रूप में सेन वंशज वीर सेन द्वारा स्थापित किये जाने से रूप राजधानी पांगणा सरही के ठाकुर के आधिपत्य में था। सन् 765 ई. में वीर सेन सरही के ठाकुर को पराजित कर पांगणा में सुकेत रियासत की राजधानी स्थापित की। सरही गांव में आज भी ठाकुर जाति के लोग अधिसंख्या में रहते हैं। सरही में क्षेत्र के नाग शिरोमणि गीह नाग का मंदिर स्थित है। यहीं स्थापित प्रचीन मलेच्छ बावड़ी के जल का प्रयोग नाग सरही की पूजा के लिये प्रयुक्त होता है।

 

मलेच्छ बावड़ी के पीछे रोचक प्रसंग जुड़ा है मलेच्छ जाति से जुड़े अनेक संदर्भ लोकमान्यताओं में प्रचलित हैं। सम्भवत: मलेच्छ जाति या तो यहां की आर्येत्तर जाति रही है या पूर्ववर्ती आर्यों के वंशज खश रहे हैं जो शारीरिक संगठन व श्रम की दृष्टि से सामान्य जन से भिन्न रहे हैं। सरही में मलेच्छ बावडी भी ऐसे ही अलौकिक व्यक्ति से जुड़ा है जो सरही के ठाकुर के पास काम किया करता था। वह मलेच्छ भोजन में मनों अन्न खा जाता था।

 

इसी मलेच्छ ने इस बावड़ी को अपने अवतरण के बाद लोगों को सौंपा था। आज भी सरही नाग की पूजा के निमित इसी बावडी के पवित्र जल को प्रयोग में लाया जाता है सरही के जितेंद्र ठाकुर और रमेश शास्त्री का कहना है कि उस मलेच्छ व्यक्ति का एक संदर्भ सुकेत के राजा से भी जुडा है।

 

कहते हैं कि एक बार राजा ने मलेच्छ को राजधानी पांगणा बुलाया। राजा भी मलेच्छ की अतुल शक्ति को देखना चाहता था। जब मलेच्छ राजा से मिलने गया तो उसने भेंट स्वरूप देवदार का एक वृक्ष उठाकर देना चाहा। जब मलेच्छ वृक्ष को उठाकर पांगणा के समीप देहरी पहुंचा तो राजा ने मलेच्छ को वहीं रूकने को कहा। उस वृक्ष से ही कहा जाता है कि देहरी माता का मंदिर बनाया गया जो आज भी वहां स्थापित है।

Leave a Comment

और पढ़ें