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सोलन में अंगदान के प्रति लोगों को किया जागरूक

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  • सोलन में अंगदान के प्रति लोगों को किया जागरूक

आपकी खबर, शिमला। 24 नवंबर। 

 

जिला सोलन के बागा में शुक्रवार को अल्ट्राटेक कम्युनिटी वेलफेयर फाउंडेशन व स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश की ओर से अंगदान के प्रति जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें अल्ट्राटेक कम्युनिटी वेलफेयर फाउंडेशन के पदाधिकारी विशेष रूप से मौजूद रहे। इस दौरान रक्तदान शिविर भी लगाया गया।

सोटो के ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर नरेश कुमार ने बताया कि किसी व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए केवल डॉक्टर होना ही जरूरी नहीं है, आप अंगदान करके भी एक समय में एक साथ आठ लोगों का जीवन बचा सकते हैं। अंगदान ब्रेन डेड स्थिति में किया जाता है।

अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रदेश भर में सोटो महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। अंगदान करने के लिए व्यक्ति घर बैठे अंगदान का शपथ पत्र भर सकता है। सोटो हिमाचल की वेबसाइट www.sotto.himachal.in पर जाकर प्लीज का ऑर्गन डोनेशन का विकल्प उपलब्ध है। इस पर कोई भी व्यक्ति अपने आधार कार्ड नंबर या आभा आईडी के जरिए अपने व्यक्तिगत जानकारी भरकर अंगदान की शपथ ले सकता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से निशुल्क है । प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार की ओर से सर्टिफिकेट भी जारी किया जाता है ।

ब्रेन डेड होने की स्थिति में सभी अंगों को सुरक्षित निकालकर जरूरतमंद मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि साल 1954 में देश में पहली बार ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया गया था।

उन्होंने बताया कि किसी भी जाति धर्म समुदाय का व्यक्ति अंगदान कर सकता है। इसे किसी भी आयु में दान किया जा सकता है। जीवित रहते हुए पंजीकरण करवाया जा सकता है ताकि मृत्यु के बाद अंग दान किया जा सके।

हमारे देश में लोगों में जागरूकता ना होने के कारण अंग दान करने से कतराते हैं, लोगों की इसी भावना को दूर किया जाना जरूरी है। देश में अंगदान की कमी की वजह से ही अंग तस्करी बढ़ रही है क्योंकि लोगों को अब नहीं मिलते हैं तो ऐसे में लोग तस्करों की सहायता लेते हैं।

हृदय को 4 से 6 घंटे, फेफड़े को 4 से 8 घंटे, इंटेस्टाइन को 6 से 10 घंटे, यकृत को 12 से 15 घंटे, पेनक्रियाज को 12 से 14 घंटे और किडनी को 24 से 48 घंटे के अंतराल में जीवित व्यक्ति के शरीर में स्थानांतरित किया जा सकता है। गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों और दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के ब्रेन डेड होने के बाद यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।

अस्पताल में मरीज को निगरानी में रखा जाता है और विशेष कमेटी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है। मृतक के अंग लेने के लिए पारिवारिक जनों की सहमति बेहद जरूरी रहती है।

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