कृषि-बागवानी

मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना से 4669 हेक्टेयर बंजर छोड़ी भूमि पर फिर से आई बहार

 

योजना के अंतर्गत प्रदेश में 175 करोड़ रुपए व्यय, राज्य के 5535 किसान हो रहे लाभान्वित

 

आपकी खबर, शिमला।

प्रदेश की कृषि जलवायु नकदी फसलों के उत्पादन के लिए अति उत्तम है। इसके अलावा यहां पारंपरिक खेती से भी लाखों परिवार जुड़े हुए हैं। कई क्षेत्रों में किसानों की कड़ी मेहनत से उगाई गई फसलों को बेसहारा व जंगली जानवरों से काफी नुकसान पहुंचता है। इससे बचाव के लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना आरंभ की है। इस योजना के अंतर्गत कृषकों को सौर ऊर्जा चालित बाड़ लगाने के लिए अनुदान दिया जा रहा है। व्यक्तिगत स्तर पर सौर ऊर्जा बाड़ लगाने के लिए 80 प्रतिशत तथा समूह आधारित बाड़बंदी के लिए 85 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान इसमें किया गया है। बाड़ को सौर ऊर्जा से संचारित किया जा रहा है। बाड़ में विद्युत प्रवाह से बेसहारा पशुओं, जंगली जानवरों एवं बंदरों को दूर रखने में मदद मिल रही है।

प्रदेश सरकार ने किसानों की मांग तथा सुझावों को देखते हुए कांटेदार तार अथवा चेनलिंक बाड़ लगाने के लिए 50 प्रतिशत उपदान और कम्पोजिट बाड़ लगाने के लिए 70 प्रतिशत उपदान का भी प्रावधान किया है। अच्छी बात यह है कि प्रदेश में किसानों का इस योजना के प्रति उत्साह एवं विश्वास लगातार बढ़ा है और लाभार्थियों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ी है। किसानों का कहना है कि जंगली जानवरों विशेष तौर पर बंदरों के उत्पात से फसलें खराब होने के कारण उनका खेती के प्रति उत्साह कम हो गया था, मगर मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना वरदान बनकर आई है। इससे बंदरों के उत्पात से उनकी फसलों का बचाव संभव हुआ है। इसमें सोलर फैंसिंग के साथ-साथ कांटेदार बाड़बंदी का प्रावधान जुड़ने से अन्य जंगली व बेसहारा जानवरों से भी फसल सुरक्षित हुई है।

योजना के अंतर्गत अभी तक लगभग 175.38 करोड़ रुपए व्यय किए जा चुके हैं। इस योजना के लागू होने के उपरांत प्रदेश में लगभग 4,669.20 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि की रक्षा की गई है जो बेसहारा पशुओं, जंगली जानवरों और बंदरों के खतरे के कारण बंजर पड़ी थी। प्रदेश के लगभग 5,535 किसान इस योजना का लाभ उठा चुके हैं।

मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना का लाभ उठाने के लिए किसान व्यक्तिगत तौर पर अथवा किसान समूह के रूप में नजदीक के कृषि प्रसार अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी अथवा विषयवाद विशेषज्ञ (एसएमएस) के माध्यम से कृषि उपनिदेशक के समक्ष आवेदन कर सकते हैं। विभाग के वृत्त, विकास खंड एवं जिला स्तरीय कार्यालयों में आवेदन फॉर्म उपलब्ध रहते हैं। आवेदन के साथ उन्हें अपनी भूमि से संबंधित राजस्व दस्तावेज संलग्न करने होंगे।

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि विभाग के एक अनुमान के अनुसार प्रदेश के लगभग 90 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और 70 प्रतिशत लोग सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर हैं। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि व इससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान लगभग 13.62 प्रतिशत है। प्रदेश में लगभग 9.97 लाख किसान परिवार हैं तथा 9.44 लाख हैक्टेयर भूमि पर काश्त होती है। यहां औसतन जोत का आकार लगभग 0.95 हैक्टेयर है। प्रदेश में 88.86 प्रतिशत किसान सीमान्त तथा लघु वर्ग के हैं जिनके पास बोई जाने वाली भूमि का लगभग 55.93 प्रतिशत भाग है। 10.84 प्रतिशत किसान मध्यम श्रेणी के हैं और 0.30 प्रतिशत किसान ही बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं।

ऐसे में प्रदेश सरकार की खेत संरक्षण योजना सीमान्त, लघु व मध्यम वर्ग के किसानों के लिए वरदान बन कर आई है। बेसहारा व जंगली जानवरों के उत्पात से खेती-किसानी से किनारा कर रहे कृषक फिर से खेतों की ओर मुड़े हैं और यह योजना हिमाचल में सुरक्षित खेती की नई इबारत लिख रही है।

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