हमारी संस्कृति

बर्फबारी को उत्सव में बदल रहे यहां के लोग

आपकी खबर, शिमला।

प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से मण्डी जिला का निहरी-पांगणा-करसोग,जाच्छ कटवाहची क्षेत्र पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। शिकारी देवी और कमरुनाग के आँचल में बसे इन क्षेत्रों और आसपास की ऊंची चोटियों पर पिछले दो दिनों में बर्फबारी हुई है। जिससे तापमान में काफी गिरावट आई है। यहाँ बर्फ का गिरना लोगों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है।

बर्फबारी के कारण लोग घरों में ही रहते हैं तथा बर्फबारी की उमंग लोगों पर इस कदर हावी रहती है कि बर्फबारी के स्वागत में अधिकतर घरों में कुलथ की खिचड़ी, तिल-गुड़ (तलुएं) गुड़-बीथु के लड्डू बनाकर सेवन करते हैं। पहले भाँग के बीजों (भंगोलु) गुड़ के लड्डू बनाकर खाए जाते हैंं। डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि आयुर्वेद मतानुसार इनकी तासीर गर्म होने के कारण यह सभी की पसंदीदा मिठाई होती है। खाने में भी भंगोलु के तेल और भंगोलु के “लुण”(नमक) का प्रयोग किया जाता था।

भंगोलु के लड्डू, भंगोलु का “लुण” भंगोलु का तेल खाने में रूचिकर, मधुर और जुकाम, कास-श्वास, संग्रहणी तथा अन्य रोगों हेतु औषधीय गुणों से भरपूर होता है। सर्दियों में “भंगोलु”के व्यंजनों के सेवन से शरीर गर्म रहता है तथा सर्दियाँ मे नीद अच्छी आती है। लोग घरों में रहकर ही मौज मस्ती में नाच-गाकर बर्फबारी के मौसम का आनंद ले रहे हैं।

हीऊँ(बर्फ)के खुशनुमा फाहों के गिरने के साथ ही पांगणा, करसोग, निहरी क्षेत्र सफेद रजत के रूप में निखर उठा है।

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