हमारी संस्कृति

स्वतंत्रता दिवस की समृद्ध परंपरा के वाहक हैं देव मेले

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आजादी के लिए भारतवासियों ने यातनाएं सही। राजा अंग्रेजों की हुकूमत के गुलाम हो गए लेकिन देशभक्त कभी फिरंगियों के आगे नहीं झुके। एक लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और आजादी की खुशी में हर वर्ष आजादी से सामान्य जन को परिचित करवाने के लिए 15 अगस्त का आयोजन पूरे राष्ट्र मैं मनाया जाता है। लेकिन सुंदर नगर विधानसभा क्षेत्र की बाढु रोहाड़ा पंचायत के रोहाड़ा गांव तथा झुंगी पंचायत मुख्यालय में पिछले 75 वर्षों से हर वर्ष स्वाधीनता के संघर्ष और आजादी की खुशी में दो दिवसीय स्वतंत्रता दिवस मेलों का आयोजन किया जाता है।इन मेलों में स्वतंत्रता की खुशी और जश्न का एक अंग आज भी इन दोनों गावों में साँसे ले रहा है।चरखड़ी-बाढो रोहाड़ा क्षेत्र के समाजसेवी शाकरा निवासी देवेन्द्र चौहान और बाढु-रोहाड़ा पंचायत की पूर्व प्रधान व हिमाचल प्रदेश की प्रख्यात लोक गायिका बिमला चौहान का कहना है कि इन मेलों को मनाने की उमंग स्थानीय वासियों पर इस कदर हावी रहती है कि इन मेलों की खुशी मे लोग मेलो से एक पक्ष पूर्व रंग-बिरंगे कपड़े सिलवाते हैं।घरों की लीपाई-पुताई,सफाई कर अतिथियों की मेहमान नवाजी की तैयारियां करते हैं।14 अगस्त को रोहाड़ा के स्वतंत्रता दिवस मेले मे माहुंनाग खून,देव बाढुबाड़ा(सुकेत संस्थापक वीर,धीर गंभीर,न्यायप्रिय राजा वीरसेन),देव शिव शंकर चपनोट,बूढ़ा विमल के देव रथ शामिल हेते हैं। झुंगी पंचायत की रक्षा देवी और काण्ढा निवासी नेत्र सिंह चौहान का कहना है कि झुंगी के स्वतंत्रता दिवस मेले में देव शिव शंकर झुंगी, बड़ा गडौण,छोटा गडौण के देवरथ ढाढी बाजगियो,कारदार तथा देव नरसिंह मंदिर जाच्छ- काण्ढा के तीन गूर,पुजारी और अपनी हार(देव क्षेत्र)की प्रजा के साथ शामिल होते है।इस दौरान देव क्षेत्र की देव भूमि मे किसी भी तरह का कृषि कार्य नही होता।संस्कृति मर्मज्ञ डाक्टर जगदीश शर्मा व सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष हिमेन्द्रबाली’हिम”का कहना है कि इन अनूठे मेलों मे आस-पास के साथ दूर दूर से नर नारी, बच्चे पारंपरिक पोशाक में सज-धजकर आते हैं। अपने इष्ट कुल-ग्राम देवताओं के देवरथो के आगे नतमस्तक होकर कई प्रकार की मन्नौतियां अर्पित कर स्वंय को धन्त करते हैं। 15 अगस्त के “झाड़ा”(न्याय विधान) में अपने दुख,आपसी विवादों के इन्साफ के लिए सर्वशक्तिमान देव गूरो व देव गणों से चावल के दानो की विषम संख्या के आपार पर इन्साफ की माग करते हैं। दिन भर ढोल,नगाड़े व शहनाई की मधुर ध्वनियों के साथ वीर और श्रृगार रस प्रधान लोक गीत संगीत पर देवरथ नृत्यों,सामुहिक नाटी नृत्यों का झूम-झूम कर आनंद लेते हैं।इन पारंपरिक गीतों व नृत्यों का अपना ही अलग आनंद है।मेले मे सभी आयुवर्ग के श्रद्धालु “जातरु”दिलखोलकर खरीददारी करते हैं। साँय काल के समय देवरथो के अपनी-अपनी कोठियों को लौट जाने के साथ राष्ट्रीय चेतना, देश प्रेम के भाव को दर्शाने वाले प्राचीन संस्कृति के अति उत्तम स्वतंत्रता दिवस के अनूठे वार्षिक मेलों का समापन भी हो जाता है।

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