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एसजेवीएन सीएमडी नंद लाल ने किया अखिल भारतीय कवि-सम्‍मेलन का उद्घाटन

  • एसजेवीएन सीएमडी नंद लाल ने किया अखिल भारतीय कवि-सम्‍मेलन का उद्घाटन

आपकी खबर, शिमला। 

एसजेवीएन लिमिटेड द्वारा हिन्‍दी पखवाड़े के दौरान अखिल भारतीय कवि-सम्‍मेलन का आयोजन शिमला में किया गया। इस सम्मेलन का विधिवत उद्घाटन मुख्यातिथि नन्द लाल शर्मा, अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, एसजेवीएन द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।

इस अवसर पर नन्द लाल शर्मा ने कहा कि निगम द्वारा राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। इसी कड़ी में इस कवि सम्मेलन का आयोजन कर निगम द्वारा न केवल हिन्‍दी के प्रचार- प्रसार किया जा रहा है अपितु राष्ट्र प्रेम और सामाजिक मुद्दों के प्रति सवेंदनाओं को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। आज भारत के प्रतिष्ठित कवि हमें न केवल अपनी हास्‍य रचनाओं से गुदगुदाएंगे बल्कि मानवीय संवेदनाओं एवं भावनाओं की अभिव्‍यक्ति से समकालीन समस्याओं पर प्रकाश डालेंगे।

इस अवसर पर गीता कपूर, निदेशक(कार्मिक), ए.के.सिंह, निदेशक (वित्त), सुशील शर्मा, निदेशक (विद्युत) सहित निगम के वरिष्‍ठ अधिकारी तथा कर्मचारी उपस्थित रहे। विद्युत मंत्रालय की हिन्‍दी सलाहकार समिति के सदस्‍य भी कवि सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहेI

एसजेवीएन द्वारा होटल हॉली डे होम, शिमला में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्‍मेलन के दौरान आमंत्रित कवियों – पद्मश्री डॉ.सुनील जोगी, सरदार मनजीत सिंह, डॉ.अरुणाकर पाण्‍डेय, श्‍लेष गौतम, खुशबू शर्मा तथा शशि श्रेया जैसे हिन्‍दी साहित्‍य के नामी कवियों ने कविता पाठ किया। उन्होंने हास्‍य रस, राष्ट्र प्रेम एवं राजनीति, भ्रष्‍टाचार से लेकर जीवन के विभिन्‍न पक्षों पर कटाक्ष करते हुए सामाजिक संदेश से ओत-प्रोत अपनी कविताओं और गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया।

पद्मश्री डॉ.सुनील जोगी ने अपनी ओजपूर्ण परिचित गेय शैली में प्रभावपूर्ण रचनाओं से जहां एक ओर श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया वहां दूसरी ओर अपनी रचना ’यह संस्‍कृतियों का संगम ऋषि मुनियों का वरदान, इसके आंचल में गुरुवाणी गीता और कुरान, तुलसी की चौपाई बोले गालिब का दीवान, जय जय हिन्‍दुस्‍तान हमारा जय जय हिन्‍दुस्‍तान’ पढ़ी तो पूरा हाल तालियों से गूंज उठा।

वहीं दूसरी ओर सरदार मंजीत सिंह ने ‘अधरों के ताले तोड़ोगी, मुस्‍का के तब गा पाओगी, हाथों को बांधे रखोगी, केवल अबला कहलाओगी’, डॉ.श्र्लेष गौतम ने ‘वतन के वास्‍ते जब भी हमारा सर कलम होगा, लहू की आखिरी वो बूंद हिन्‍दुस्‍तान बोलेगी’, खुशबू शर्मा ने ‘मैं कोई फूल नहीं हूं, जो बिखर जाऊंगी, मैं वो खुशबू हूं जो सांसों में उतर जाऊंगी’ नामक रचनाओं, मिमिकरी और कविताओं से श्रोताओं को न केवल हंसाया बल्कि सामाजिक विसंगतियों पर कुठाराघात करते हुए श्रोताओं को सोचने पर मजबूर भी कर दिया।

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