- परंपरा : खुंद अर्जुन के खून से हुआ मां भद्रकाली का तिलक
- शिमला के धामी में पत्थर मेले का शानदार आयोजन
आपकी खबर, धामी।
जिला शिमला के अंतर्गत धामी में आज सदियों से चली आ रही परंपरा के अंतर्गत पत्थरों के खेल का आयोजन किया गया। खेल के तहत दोनों ओर से करीब लगभग आधे घंटे तक जमकर पत्थरों को फैंका गया। हर वर्ष की भांति इस बार भी पत्थरों का यह खेल तब तक जारी रहा जब तक किसी प्रतिनिधि को पत्थर लगकर खून नहीं बहा। इस बार जमोगी गांव के खूंद अर्जुन के सिर पर पत्थर लगा और उनसे खून बहा। ऐसे में खूंद अर्जुन को राजदरबार की ओर से बरसे पत्थरों के लगने से निकले खून के बाद इस आयोजन कमेटी की ओर से खेल को बंद करने को झंडा लहराने के बाद यह अनोखा युद्ध बंद किया गया।
अर्जुन के सिर से निकले खून के बाद सती का शारड़ा मेला स्थल पर पूजा अर्चना हुई और कुछ ही दूरी पर बने भद्रकाली के मंदिर में तिलक का इस रस्म को पूरा किया गया। पत्थर लगने पर खेल का चौरा में जमकर ढोल नगाड़ों की थाप पर नाटियों का दौर चला। मौजूद युवा और लोगों ने नाच गा कर इस पर्व को मनाया। कोरोना काल के कारण पिछले दो वर्षों से मेला बंद रहा, सिर्फ रस्म निभाने के लिए राज परिवार के वंशज जगदीप सिंह के कटर से हाथ में कट लगाकर ही भद्रकाली का तिलक इस पंरपरा को निभया जाता रहा।
दो साल के बाद इस बाद पत्थरों के मेले का पहले की तरह पूरी उत्साह के साथ आयोजन कमेटी ने आयोजन किया। परंपरा के अनुसार दोपहर तीन बजे राजदरबार स्थित नरसिंह मंदिर में पुजारी ईश्वर और जगदीप सिंह ने पूजा अर्चना कर रक्षा का फूल लेकर दरबार से ढोल नगाड़ों के साथ मेला स्थल खेल का चौरा के लिए शोभा यात्रा निकाली। इसमें कमेटी के पदाधिकारी देवेंद्र सिंह, रणजीत सिंह, देवेंद्र भारद्वाज सहित अन्य सदस्यों ने सती का शारड़ा में पहुंच कर पूजा अर्चना की रस्म पूरी की। इसके 3ः40 पर शिमला की ओर खड़े जमोगी के खूंद और दूसरी ओर राज परिवार की ओर से जुटे कटेड़ू, धगोई, तुन्सु, जठौती के युवाओं ने एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू किया। करीब बीस मिनट तक चली दोनों ओर से पत्थरों की बौछारों के बाद पत्थर लगने पर खेल को बंद कर दिया गया। पत्थर के खेल को देखने के लिए मेले में हजारों की भीड़ जुटी थी। लोगों ने मेले को लेकर उत्साह दो साल पहले की तरह से नजर आया।
धामी के पत्थर के खेल मेले में सजी जलेबी, पकौड़े की दुकानों से लोगों ने खूब खरीददारी की। वहीं मेले में आए बच्चों ने खिलौने, महिलाओं ने सज्जा के सामान सहित घर की जरूरतों का सामान खरीदा। मेले से हर घर को जलेबी और मिठाई खरीद कर ले जाई जाती है। राज परिवार के वंशज जगदीप सिंह ने बताया सदियों से यह परंपरा चलती आ रही है। पहले यहां मानव बलि हुआ करती थी। खेल का चौरा में सती हुई रानी ने इस पंरपरा को बंद करने के लिए मानव बलि को समाप्त करने के लिए पत्थर का मेला शुरू किया था।