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शक्ति के सम्बल रक्षा बंधन से आलोकित हुई ऐतिहासिक नगरी करसोग

  • शक्ति के सम्बल रक्षा बंधन से आलोकित हुई ऐतिहासिक नगरी करसोग

आपकी खबर, करसोग।

भाई-बहन के पावन स्नेह की पावन ज्योति जगाने वाले रक्षा बंधन का परंपरागत पर्व करसोग मे धूमधाम से आयोजित किया गया। इस अवसर पर बहनों ने व्रत रखकर भाइयों के सीधे हाथ की कलाई पर रक्षा का प्रतीक राखी बांधी।

राखी बांधने से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर रसोई, पूजा कक्ष, सभी द्वारो की देहरी सहित आंगन के मध्य बने “मान्दले”/वास्तु पर “हरमुन्जी” से वर्गाकार लघु आकृति(घणोटी देकर) बनाकर इसका पुष्प,धूप,दीप,द्रुवा आदि से पूजन किया। फिर पूर्व दिशा की ओर खड़े हुए भाई के माथे पर तिलक लगाकर,कान के पीछे द्रुवा रख पारम्परिक रीति से पूजन कर कलाई पर श्रद्धा,आस्था और विश्वास के प्रतीक राखी को बान्ध कर मानवता का मार्ग आलोकित किया।

बदले में भाई ने बहन को मिष्ठान खिलाकर यथाशक्ति दान राशि भेंट करने के बाद चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया।संस्कृति मर्मज्ञ एवम् वरिष्ठ समाज सेवी डॉक्टर जगदीश शर्मा ने बताया कि रक्षा बंधन केवल भाई बहन का पर्व ही नहीं बल्कि राखी के धागे ने देवताओ की विजय का मार्ग भी आलोकित किया है।कहते है कि जब देवताओं के राजा इन्द्र 12 वर्ष तक निरंतर युद्ध करने के बाद भी दैत्यो को पराजित नही कर सके तब इन्द्राणी ने ब्राह्मणो से वेद पाठ कराने के बाद अपने पति की कलाई मे रक्षा सूत्र बंधा था। यह पवित्र सूत्र का प्रताप ही था कि इन्द्र ने दैत्यो पर विजय प्राप्त की। विद्वान रमेश शास्त्री का कहना है कि यदि पहले दिन भद्रा हो तो दूसरे दिन शुभ काल मे रक्षा बंधन बांधना चाहिए।

इस दिन ब्राह्मणो ने भी अपने यजमानो के घर-घर जाकर इनके पूरे परिवार की रक्षा, सुख शान्ति,धन-धान्य की वृद्धि और मंगलमय जीवन की कामना के लिए रक्षा सूत्र बान्धे।रक्षा बंधन न केवल भाइयों, यजमान व परिजन को अपितु मंदिरो मे भी रक्षार्थ अर्पित किया गया। शक्ति का सम्बल रक्षा बंधन सब रोगों का नाशक तथा सब अशुभों को नष्ट करने वाला पर्व है जिसे एक बार शुभ मुहूर्त मे धारण कर लेने से एक वर्ष तक रक्षा होती है। इस अवसर पर करसोग घाटी में आहार के रूप में सेवइयां परोसी गई। गंदम केआटे की सेवइयां को हाथ से बनाने और धूप मे सुखाने का कार्य एक सप्ताह पहले ही शुरु हो जाता है।

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