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पंचतत्व में विलीन हुए सुकेत सत्याग्रह के योद्धा हेतराम

  • पंचतत्व में विलीन हुए सुकेत सत्याग्रह के योद्धा हेतराम 

 

आपकी खबर, करसोग। 18 सितंबर, 2023

 

जिला मण्डी के उपमंडल करसोग के अंतर्गत भनेरा पंचायत के थाच निवासी 101 वर्षीय सत्याग्रही हेतराम के 8 सितम्बर 2023 शुक्रवार को निधन से सुकेत सत्याग्रह के एक अध्याय का अवसान हो गया। सुकेत सत्याग्रह हिमाचल के प्रजामण्डल के आन्दोलन का एक ऐसा विप्लवकारी जनान्दोलन था जिसने यहां की रियासतों के भारत संघ में विलय का मार्ग प्रशस्त किया।

सुकेत रियासत की स्थापना 765 ई. में बंगाल से आये सेन वंशज वीरसेन ने पांगणा में की थी। सुकेत सतलुज व व्यास घाटियों में बसी रियासत थी जिससे अलग होकर 11वीं शताब्दी में मण्डी रियासत अस्तित्व में आई थी। सुकेत हिमाचल में आबाद उन रियासतों में अग्रणी थी जहां सर्वप्रथम 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद जन आंदोलन का सूत्रपात हुआ था। उस दौर में सुकेत का शासक प्रजा मण्डल के प्रति सख्त था। सुकेत में सत्याग्रह के लिए वातावरण व परिस्थितियां अनुकूल थीं। डॉ. यशवंत सिंह परमार के नेतृत्व में सुकेत के 60-70 प्रजा मण्डल कार्यकर्ताओं के साथ तत्तापानी में बैठक हुई।

इसी बैठक में सुकेत सत्याग्रह का कार्यक्रम निर्धारित किया गया। 18 फरवरी 1948 को सुकेत सत्याग्रह का आरम्भ हुआ। लगभग सौ सत्याग्रहियों ने तत्तापानी व फिरनू की चौकियों पर अधिकार कर लिया और जय घोष करते मार्ग में लोगों को साथ में जोड़ते सांय करसोग पहुंचे। सुकेत सत्याग्रह के फूट पड़ने से पहले ही सुकेत के सत्याग्रही गांव गांव जाकर युवाओं को आन्दोलन में संगठित करने का प्रयास करते रहे।

करसोग तहसील की भनेरा पंचायत के थाच गांव से सम्बंध रखने वाले हेतराम सुकेत सत्याग्रह के सक्रिय सदस्य रहे । हेतराम का जन्म सन् 1922 में हुआ। वे देव मिस्त्री रहे और कामाख्या माता की काओ में प्राचीन पीठ के मंदिर के जीर्णोद्धार में हेतराम मुख्य राजगीर थे। हेतराम के अनुसार 1947-48 में सुकेत की जनता में रियासती शासन के प्रति भारी आक्रोश था। यहां अन्य रियासत की जनता की अपेक्षा जनचेतना अधिक थी। यही कारण था कि प्रजा मण्डल के नेताओं ने सुकेत को प्रथम सत्याग्रह के लिए चुना।

महावन गांव का व्यक्ति मनोहर एक जुझारू सत्याग्रही था। वह अन्य सत्याग्रहियों के साथ सुकेत के गांव गांव जाकर लोगों को आंदोलन में जोड़ता रहा। मनोहर ने जब युवा हेतराम को देखा तो उस समय वे खेत में हल चला रहे थे। मनोहर के आग्रह पर हेतराम ने काम छोड़कर तुरन्त सत्याग्रहियों के जत्थे में जुड़ गए। हेतराम की माता ने बेटे को जाने से रोका। परन्तु मुक्त संघर्ष भावना से भरे हेतराम भला मां का आग्रह कहां मानने वाले थे।

फिरनू व तत्तापानी की रियासती चौकियों पर सत्याग्रहियों ने अधिकार कर वहां अपने लोगों को तैनात कर लिया। जहां जहां से सत्याग्रही गुजरे वहां के गांव के लोग जत्थे में जुड़ते गए। 18 फरवरी की सांय सैंकड़ों सत्याग्रहियों ने करसोग पहुंचे कर यहां कार्यरत सभी रियासती कर्मचारियों को अपने अधीन कर लिया। हेतराम भी सत्याग्रहियों में एक थे और सत्याग्रहियों ने करसोग के पहाड़ी सर्कल पर अधिकार कर रात्रि में विजयोल्लास में तिरंगा फहराया।

हेतराम घर-परिवार छोड़कर एक विरक्त सत्याग्रही बन चुके थे. उनके अनुसार 19 फरवरी को लगभग चार हजार सत्याग्रही सुकेत की प्राचीन राजधानी पांगणा पहुंचे और उन्होने राजधानी पर अधिकार कर लिया। आगामी दो दिन भारी बारिश के कारण सत्याग्रही पांगणा में ही रुके रहे। पांगणा में हेतराम को चवासी क्षेत्र से बड़ी संख्या में सत्याग्रही मिले। 22 फरवरी को बारिश के थम जाने के बाद सत्याग्रहियों का जुलूस भारत माता की जय व इन्कलाब जिन्दाबाद के गगन भेदी नारों के जयघोष के साथ राजधानी सुन्दर नगर की ओर बढ़ा।

जब सत्याग्रही जयदेवी पहुंचे तो वहां सुकेत प्रजा मण्डल के अध्यक्ष वीर रत्न सिंह 1000 सत्याग्रहियों सहित जुलूस में शामिल हो गए। यहां घटित एक घटना का संदर्भ हेतराम ने प्रस्तुत किया। जब सत्याग्रही जयदेवी पहुंचे तो एक सत्याग्रही ने अपनी बंदूक से एक पक्षी को मार गिराया। अचूक निशाने की इस घटना को सत्याग्रहियों ने राजा पर विजय का शुभ संकेत मान कर उल्लास मनाया। यह मान्यता सत्याग्रहियों में व्याप्त हो गई कि जैसे पक्षी पर निशाना अचूक रहा वैसे ही सत्याग्रहियों का रियासत पर अधिकार करने का यह संघर्ष भी सफल होगा।

जयदेवी से लगभग 25000 हजार सत्याग्रही 25 फरवरी 1948 को राजधानी सुन्दर नगर की ओर चले। जयदेवी से चलकर सत्याग्रही बनेड़ पहुंचे। यहां सत्याग्रहियों का सामना रियासत के सैनिकों से हुआ। सुकेत के राजा को जब सूचना मिली की उसके सैनिक भी सत्याग्रहियों के बढ़ते कदमों के आगे असहाय हो गई है तो उसने अपने दो पालतू शेरों को सत्याग्रहियों को रोकने के लिए छोड़ा। परन्तु सत्याग्रहियों ने शेरों को भी मौत की नींद सुला दिया।

अब सत्याग्रहियों ने आगे बढ़कर राजा की राजधानी पर अधिकार कर लिया। राजा महल छोड़कर चला गया तथा सत्याग्रहियों ने राजा के सामने ही महल में ताले लगा दिए। इस प्रकार सुकेत के सत्याग्रहियों ने हिमालयी प्रांत की सुकेत रियासत पर अधिकार कर रियासतों के हजारों वर्षों के राज्य के अवसान का मार्ग खोल दिया। 26 फरवरी 1948 को चीफ कमीश्नर नागेश दत्त जालंधर से सेना सहित सुन्दर नगर पहुंचे।

चीफ कमीश्नर ने सुकेत रियासत के भारत संघ में विलय की घोषणा की। इस प्रकार सत्याग्रहियों के नि:स्वार्थ सेवा-संघर्ष ने रजवाड़ा शाही की दासता से सुकेत को मुक्ति दिलाई। हेतराम की धर्मपत्नी 92 वर्षीय तवारसु देवी भी सुकेत सत्याग्रह के संघर्ष के उन दिनों के संस्मरण को सांझा करती हैं। तवारसु देवी ने उस समय प्रचलित सत्याग्रह पर बनाये गये लोकगीत की पंक्तियों को सांझा किया…

शाओटे लेजरा, मौंहे मनोहरूआ शिमलै लागे चढ़ाए,

रैत लागै डरदै आए गोए मनोहरू रे धज्जै,

मनोहरू हुआ मरणा रैता लै डा झगड़ा पाए।

 

अर्थात् मनोहर सत्याग्रही ने सुकेत में लोगों को सत्याग्रह के लिए लामबंद किया। जब मनोहर की मृत्यु हुई तो रैत अर्थात किसानों में झगड़ा पड़ा रहा। अर्थात् मनोहर के आह्वान पर किसान आन्दोलित हुए और एक संगठित सत्याग्रह आंदोलन ने रियासती दासता से मुक्ति दिलाई।

हेतराम सत्याग्रह के सक्रिय सेनानी रहे। सुकेत सत्याग्रह के लिये जनचेतना अभियान से लेकर जन संगठन व सुकेत सत्याग्रह आंदोलन के घटनाक्रम के हेतराम गवाह रहे। दस्तावेजों के अभाव में हेतराम का नाम स्वतंत्रता सेनानी की सूची में शामिल नहीं हो सका परन्तु हेतराम के रियासती शासन के विरूद्ध अपने नि:स्वार्थ योगदान को इतिहास सदैव याद रखेगा।

हेतराम जैसे अनेक वीतराग स्वतंत्रता सेनानी का संघर्ष आज की युवा पीढ़ी के लिए उत्प्रेरक की भूमिका में है। हेतराम आजादी के बाद निरन्तर क्रियाशील रहे। अपने पुश्तैनी व्यवसाय राजगीरी के कार्य को पिछले दो-तीन वर्ष तक करते रहे। हेतराम का देहान्त 101 वर्ष की आयु में शुक्रवार 8सितम्बर 2023 को होने से सुकेत सत्याग्रह के एक अध्याय का अन्त हो गया।

सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन-कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाॅक्टर हिमेंद्र बाली “हिम” और पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डाॅक्टर जगदीश शर्मा ने हेतराम के प्रति श्रद्धांजली अर्पित करते हुए कहा कि हेतराम जैसे गुमनाम वीरनायक व सत्याग्रह के नायक का राष्ट्र के लिये बलिदान सदैव याद रखा जायेगा।

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