जयंती पर विशेष, कहानीकार का संबंध हिमाचल से भी जुड़ा
क्रांति के यश में आजादी के बाद जिंदा हुआ था कहानीकार यशपाल
आपकी खबर, साहित्य विशेष
जब देश की आजादी के लिए शहीदे-आज़म भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, दुर्गा भाभी और भगवतीचरण क्रांति की अलख जगा रहे थे, तब हिमाचल प्रदेश के नादौन के यशपाल भी इन क्रांतिकारियों के साथ संघर्ष कर रहे थे। बम और बारूद से अंग्रेजों की सत्ता को हिलाने वाले यशपाल आजादी के बाद एक कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में मशहूर हुए। इनकी कलम से बाबा कामरेड, दिव्या और झूठा सच जैसी कालजयी उपन्यासों का सृजन हुआ।
जब ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के दौर में देश की फिजा में आजादी का बसंती रंग घोलने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह महज 23 साल की छोटी-सी उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में (जो अब पाकिस्तान में है) पैदा हुए भगत सिंह ने जब देश की आजादी के लिए क्रांति का रास्ता चुना, तो उनके साथ चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, दुर्गा भाभी और भगवतीचरण जैसे कई साथी थे। इन्हीं साथियों में एक हिमाचल के यशपाल भी थे।
लाहौर के पंजाब नेशनल कॉलेज में शुरू हुई दो नौजवानों की दोस्ती में बसंती रंग कुछ ऐसे घुला कि देश की क्रांति का ‘यश सारी दुनिया में फैल गया। गांधी जी की चौरी-चौरा की नीति से निराश होकर यशपाल ने लाला लाजपत राय की ओर से स्थापित नेशनल कॉलेज लाहौर में प्रवेश लिया। यहीं वे भगत सिंह, सुखदेव व भगवती चरण के संपर्क में आए और क्रांति की ओर मुड़े। ये वही वक्त था जब भगत सिंह अपने दोस्त को क्रांति के लिए तराश रहे थे।
भगत सिंह उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल करते गए और कई अहम जिम्मेदारियां सौंपी। भगत सिंह, सुखदेव और यशपाल सहपाठी थे। भगवतीचरण भी जुड़े और ये कुनबा बढ़ता गया। क्रांतिकारी गतिविधियों में उनकी व्यापक और सक्रिय हिस्सेदारी के चर्चे आम होने लगे।नादौन के यशपाल का अर्की से भी संबंधतीन दिसंबर 1903 को फिरोजपुर छावनी (पंजाब) में जन्मे यशपाल का हिमाचल से गहरा नाता था।
उनके पिता हीरालाल हमीरपुर के नादौन के गांव रंघाड़ (भूंपल) में जाने- माने कारोबारी थे। इनके पूर्वजों का संबंध सोलन जिला के अर्की से भी था। सात-आठ वर्ष की आयु में यशपाल का गुरुकुल कांगड़ी में प्रवेश हुआ। 1917 में गंभीर बीमारी से पीडि़त होने के कारण वे लाहौर चले गए और डीएवी स्कूल में दाखिला लिया। 1917 में रौलेट एक्ट के स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया। 1921 में फिरोजपुर छावनी के मनोहर लाल मेमोरियल स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की।
वजीफा मिलने के बावजूद असहयोग आंदोलन के कारण उन्होंने सरकारी कॉलेज में भर्ती होने से इंकार कभगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के मार्च 1929 में दिल्ली असेंबली में बस फेंकने के बाद परिदृश्य बदल गया। 1929 में लाहौर में बम फैक्टरी पकड़ी गई और यशपाल फरार हो गए। 23 दिसंबर 1929 को लॉर्ड इर्विन की गाड़ी के नीचे यशपाल ने बम विस्फोट किया। 1931 में आजाद के शहीद हो जाने के बाद यशपाल हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी के कमांडर इन चीफ हो गए। 23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शाम फांसी पर लटका दिया।
23 जनवरी 1932 को यशपाल इलाहाबाद में गिरफ्तार हुए और उन्हें छह वर्षों की सजा के बाद दो मार्च, 1938 को रिहा किया गया। जेल में ही एक प्रखर कहानीकार का जन्म भी हुआ। यशपाल को साहित्य के क्षेत्र में सरकार ने वर्ष 1970 में पद््म भूषण से सम्मानित किया। 26 दिसंबर 1976 को यशपाल भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए।