- सीटू के सम्मेलन में राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर ने केंद्र सरकार को घेरा
- कहा, मजदूरों के 44 कानून खतम कर फेक्ट्रियों में मजदूरों को बनाया जा रहा बंधुआ
- शिमला के कालीबाड़ी में सीटू का सम्मेलन आयोजित
आपकी खबर, शिमला।
सीटू जिला कमेटी शिमला का दो दिवसीय दसवां जिला सम्मेलन कालीबाड़ी हॉल शिमला में शुरू हुआ। सम्मेलन में जिला से दो सौ प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। सम्मेलन से पूर्व सीटू जिलाध्यक्ष कुलदीप डोगरा ने सीटू के झंडे का ध्वजारोहण किया। इसके पश्चात प्रतिनिधियों ने शहीदों को पुष्प अर्पित किए। सम्मेलन में शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए शोक प्रस्ताव रखा गया।
सम्मेलन में सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, उपाध्यक्ष जगत राम, कुलदीप डोगरा, मदन नेगी, ऑल इंडिया लॉयर्ज़ यूनियन के प्रदेश सचिव एडवोकेट अशोक वर्मा, प्रवीण चौहान, जन विज्ञान आंदोलन के राज्य सचिव जियानंद शर्मा व दलित शोषण मुक्ति मंच के जिला सह संयोजक विवेक कश्यप विशेष रूप से शामिल रहे।
सम्मेलन का उद्घाटन सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर ने किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार लगातार मजदूरों के कानूनों पर हमले कर रही है। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने, सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण के निर्णय लिए हैं। उन्होंने ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली, आउटसोर्स नीति बनाने, स्कीम वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने, मनरेगा मजदूरों के लिए 350 रुपये दिहाड़ी लागू करने आदि विषयों पर केंद्र व प्रदेश सरकार की मज़दूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों की कड़ी आलोचना की है।
उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले 100 सालों में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है।
यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से देश की नब्बे प्रतिशत आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है।
सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने सम्मेलन में आये प्रतिनिधियों से केंद्र की मोदी सरकार की जनता व मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ सशक्त आंदोलन खड़ा करने का आह्वान किया।