आपकी खबर, पांगणा।
सुकेत रियासत की ऐतिहासिक नगरी पांगणा में आयोजित की जाने वाली पारंपरिक गुग्गा रथ यात्रा सबसे अनूठी देव यात्रा है।इस वर्ष इस यात्रा का आयोजन सुकेत अधिष्ठात्री राज-राजेश्वरी महामाया पांगणा के स्मारक देवी कोट दुर्ग/मंदिर से रक्षा बंधन से किया गया। पांगणा,कलाशन, मशोग,सोरता,बही-सरही,सुइं-कुफरीधार ,चुराग आदि पंचायतों के घर आंगन मे पहुंच कर सिंहासनी गुग्गा जी,गुग्गी जी व सहयोगी देवगण श्रद्धालुओ के कष्ट निवारण करेंगे। गुग्गा मंडली के प्रधान नरेश कुमार सहित अन्य सहयोगियों गोपाल, देवेन्द्र कुमार आदि ने बताया कि इन पंचायतो के लोग अत्यंत उत्सुकता से गुग्गा जी के घर आने का इंतजार करते है। पारंपरिक गुग्गा यात्रा के दौरान बाग-भुट्ठा- सलाडी, नगराओ, पज्यांणु, दोघरी गांव के धर्मपरायण नाथ समुदाय के लोग पारंपरिक गुग्गा गाथाओं का शहनाई,कान्से की थाली पर मधुर धुनो के साथ हर घर के आंगन मे श्रृष्टि की उत्पति, गुग्गा जन्म,बहन बिछोडा,गोरख कुंडली, झेड़ा जैसी अनूठी गुग्गा गाथाओ का गायन करते है। पुत्र लाभ, अन्न-धन रक्षा, ऋण निवारण,मुकदमे मे विजय प्राप्ति,शत्रु मर्दन की मन्नौतिया पूर्ण होने पर हर रात “जातर” वाले घर मे रात्रि मेले का आयोजन कर जागरण करते है। रात्रिभोज के बाद लक्ष्मण, विक्की, चमन, धनीराम, परसराम, योगेश, किशोरी लाल आदि अन्य साथियों द्वारा गुग्गा गाथाओं का गायन देव गूर भूपेन्द्र और गोपाल”खेल खलाटी” कर श्रद्धालुओ देव वाणी से अचम्भित करते हैं। फिर भजन कीर्तन का कार्यक्रम चलता है। प्रातःसूर्योदय से पूर्व गुग्गा जागरण, गुग्गा स्नान, पूजा-अर्चना, दान-दक्षिणा अर्पित कर घर-परिवार, रिश्तेदार पुण्य कमाते है। ध्यान, उपासना, अनुष्ठान व भोजन के बाद फिर गांव-गांव की अत्यंत भक्तिमय परिक्रमा के पथ पर गुग्गा मंडली बढ़ जाती है। गुग्गा गाथा गायन की यात्रा बाग गांव के देवगूर गोपाल के घर से शुरु होती है तथा समापन नागराओं के समाजसेवी व संस्कृति मर्मज्ञ तेजराज भारद्वाज के घर मे होता है।bजहाँ रात्रि के विशेष आकर्षण को देखने के लिए सैकड़ो श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। बाद मे गुग्गा जी और गुग्गी जी अपने स्थापत्य स्थान दुर्ग मंदिर देवी कोट के पूजा कक्ष मे एक वर्ष के लिए पुन: विराजमान हो जाएंगे।
संस्कृति मर्मज्ञ डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि गुग्गा जाहरपीर सिद्ध परम्परा के वीर योद्धा हैं। जिनकी शौर्य गाथाएं बहुप्रसिद्ध हैं। गुग्गा जी सिद्धनाथ परम्परा के प्रवर्तक गोरखनाथ जी के वरद पुत्र हैं। गुग्गा जी की मान्यता सर्पराज के रूप में भी प्रचलित है। गुग्गा जी को मुण्डलिख भी कहा जाता है।बताते हैं कि कालांतर में युद्ध करते हुए सर के धड़ से अलग होने पर भी लड़ते रहे। उनके मुण्ड अर्थात् सिर की एक रेखा ही नजर आ रही थी। इसलिये उनका नाम मुण्डलिख पड़ा। गुग्गा जी का दुर्ग/मंदिर महामाया मंदिर से भ्रमणार्थ आगमन राखी पूर्णिमा को होता है। गुग्गा जी का ऐतिहासिक नगरी पांगणा क्षेत्र की पंचायतों के घर-घर गांव-गांव जाकर लोगों को भाद्रपद के अंधेरे महीने में आसुरी शक्तियों के प्रभाव से लोगों की रक्षा करने का भाव बहुत अद्भुत है।