आपकी खबर, शिमला।
शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थिएटर में हिमाचल प्रदेश की अग्रणी नाट्य संस्था संकल्प रंगमंडल शिमला द्वारा गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी की अभिनव पहल “Weekend Theatre Initiative” के शुभारंभ अवसर पर भारतीय रंगमंच के कलासिक नाटक ” सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक” का मंचन किया गया l इस नाटक के नाटककार श्री सुरेन्द्र वर्मा हैं जिन्हें केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा राष्ट्रीय व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है जबकि इस नाटक का निर्देशन राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली द्वारा निर्देशन के क्षेत्र में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां युवा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित उत्तर भारत के प्रख्यात नाट्य निर्देशक केदार ठाकुर द्वारा किया गया है l
गौर तलब है कि यह नाटक गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी (जीo डीo एसo) की रंगमंच को बढ़ावा देने की अभिनव पहल “Weekend Theatre Initiative ” के शुभारंभ के विशेष अवसर पर मन्चित किया गया l
गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी जीo डीo एसo की इस योजना के तहत कोविड संकट के पश्चात रंगमंच को बढ़ावा देने की पहल के अंतर्गत हर महीने के दूसरे और चौथे weekend पर हिमाचल प्रदेश की नाट्य संस्थाओं द्वारा नाटक का मंचन ऐतिहासिक गेयटी थिएटर में किया जाएगा l इस अभिनव पहल के लिए जीoडीo एसo बधाई का पात्र है और संकल्प रंगमंडल शिमला हिमाचल प्रदेश के रंगकर्मियों की ओर से गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी को धन्यवाद करता है l
नाटक के बारे में
“जब आत्म संतोष की अंधी दौड़ हो और व्यक्तिगत सुख की खोज, तो जीवन बहुत जटिल हो जाता है और उसकी माँगे भी उतनी ही उलझी हुई ” नाटक सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक का यह संवाद ही नाटक का मूल मर्म है l नाटक मल्ल राज्य की पृष्ठभूमि पर रचा गया है लेकिन वर्तमान में भी सर्वथा प्रासंगिक है l
नाटक का नायक राजा ओक्काक नपुंसक है और अमात्य परिषद द्वारा एक गरीब कन्या शीलवती से उसका विवाह करवा दिया गया था लेकिन 5 वर्ष बीत गये हैं और अभी तक कोई संतान नहीं होती l मल्ल राज्य की सशक्त मंत्री परिषद राजा ओक्काक और रानी शीलवती के सामने राज्य की उत्तराधिकारी की घोषणा की परंपरा को बनाए रखने के लिए नियोग प्रथा से उत्तराधिकारी प्राप्त करने का प्रस्ताव रखती है जिस से राजधर्म का पालन हो और राज्य भीतरी और बाहरी संकटों से मुक्त हो l इसके लिए रानी शीलवती को नियोग प्रथा के अंतर्गत गर्भ धारण करने के लिए तीन अवसर दिए जाएंगे जिसमें रानी शीलवती अपनी इच्छा से किसी भी नागरिक को एक रात के लिए सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक उप पति के रूप में चुनेगी l एक सप्ताह से राज्य के कोने कोने में ये उद्घोषणाएँ कर दी गई हैं और अब वो समय बिल्कुल नजदीक है जब रानी को इस प्रथा से गुज़रना होगा l मर्यादा, धर्म, शील और वैवाहिक बंधन में जकड़ी नायिका शीलवती स्वयं को असहज और असहाय स्थिति में पाती है और एक सप्ताह के इस घटना क्रम ने उसे भीतर तक झकझोर दिया है l नाटक के पहले अंक में शीलवती मर्यादाओं और विवशताओं की पराकाष्ठा पर है l महामात्य रानी शीलवती को प्रेरित कर इस प्रथा से गुज़रने के लिए राज़ी कर लेता है और अब रानी शीलवती नियोग के लिए तैयार है l
नियोग के लिए चुने गए पुरुष के स्पर्श और संसर्ग से रानी शीलवती रोमांचित हो उठती है और यह महसूस करती है कि अब तक उसने कितना कुछ खोया है l उसे इस रात में यह महसूस होता है कि राजा ओक्काक और अमात्य परिषद ने उसे और उसके नारीत्व को नपुंसक राजा के उपचार के लिए उसे सिरफ एक औषधी के रूप में इस्तेमाल किया है l अमात्य परिषद द्वारा रानी शीलवती को वैधानिक जाल में फँसाकर केवल एक वस्तु की तरह इस्तेमाल करना रानी शीलवती को विद्रोही बना देता है और नाटक के तीसरे अंक तक वो विद्रोही होकर उभरती है और मर्यादा, धर्म, शील और वैवाहिक बंधन को सिरे से नकार देती है l वात्सल्य और मातृत्व से वंचित नायिका शीलवती का आक्रोश अंत तक चर्म पर आ जाता है l अमात्य परिषद और राजा ओक्काक पर पाँच वर्षों से शारीरिक और मानसिक यातनाएँ झेल रही शीलवती प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है और स्त्री पुरुष संबंधों की नई परिभाषाएँ स्थापित करती है जिसमें रानी शीलवती वर्तमान की आधुनिक भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करती नज़र आती है जो पुरुष की शारीरिक अक्षमता को सामने रख कर स्त्री पुरुष संबंधों में स्वच्छंदता और संतोष की पैरवी करती है और स्थापित मर्यादाओं और रूढ़िवादी विचारों को सिरे से नकार देती है l