Wednesday, May 15, 2024

वैश्विक स्तर पर ख्याति प्राप्त कर रहे हैं हिमाचल हैंडलूम उत्पाद

  • वैश्विक स्तर पर ख्याति प्राप्त कर रहे हैं हिमाचल हैंडलूम उत्पाद

आपकी खबर, शिमला।

हिमाचल प्रदेश के बुनकरों ने हथकरघा व हस्तशिल्प के अपने पारम्परिक कौशल से देश-विदेश में राज्य का नाम रोशन किया है। हथकरघा उद्योग क्षेत्र में प्रदेश की कढ़ाई वाली कुल्लवी तथा किन्नौरी शॉल ने अन्तरराष्ट्रीय बाजार में अपनी एक अलग पहचान कायम की है।

 

प्रदेश सरकार द्वारा बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। विभिन्न जागरूकता शिविरों के आयोजन के साथ-साथ प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। ये बुनकर कलस्टर विकास कार्यक्रम के विभिन्न घटकों के माध्यम से भी लाभान्वित किए जा रहे हैं।

 

हथकरघा से संबंधित उपकरण भी बुनकरों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। उद्योग विभाग द्वारा प्रदेश तथा अन्य राज्यों में आयोजित मेलों तथा प्रदर्शनियों के माध्यम से विपणन सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। बुनकरों के उत्पादों को व्यापार मेलों, दिल्ली हॉट, सूरजकुंड मेलों इत्यादि राष्ट्र स्तरीय आयोजनों में भी व्यापक स्तर पर विपणन की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है।

 

हथकरघा उद्योग में प्रदेश की प्रमुख सहकारी समितियों में शामिल ‘हिमबुनकर’ बुनकरों तथा कारीगरों की राज्य स्तरीय संस्था है, जो कई वर्षों से कुल्लवी शॉल तथा टोपी को बढ़ावा दे रही है।

 

कुल्लवी हथकरघा उत्पादों का इतिहास बहुत रूचिकर है। प्रसिद्ध चित्रकार निकोलस रोरिक की पुत्रवधू तथा भारतीय फिल्म अभिनेत्री देविका रानी वर्ष 1942 में कुल्लू आई तथा उनके आग्रह पर बनोन्तर गांव के शेरू राम ने अपने हथकरघा पर पहली शॉल बुनी। इसके उपरान्त, उनके हथकरघा कौशल से प्रेरित होकर पंडित उर्वी धर ने शॉल का व्यापारिक उत्पादन आरम्भ किया।

 

वर्ष 1944 में भुट्टी बुनकर सहकारी समिति, पंजाब सहकारी समिति लाहौर के तहत पंजीकृत की गई, जिसे आज भुट्टिको के नाम से जाना जाता है। भुट्टिको ने कुल्लू की हजारों महिलाओं को कुल्लवी शॉल बनाने की कला में प्रशिक्षण प्रदान किया है। वर्ष 1956 में ठाकुर वेद राम भुट्टिको के सदस्य बने तथा इसे पुनः गति प्रदान की। इसके उपरान्त, भुट्टिको के अध्यक्ष सत्य प्रकाश ठाकुर ने इस संस्था को पूरे प्रदेश में संचालित किया। इस कुटीर उद्योग में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों को रोजगार प्रदान किया जा रहा है। कुल्लवी शॉल के उत्पादन में देवी प्रकाश शर्मा का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कुल्लू शॉल सुधार केन्द्र के तकनीशियन के तौर पर 1960 के दशक के दौरान कुल्लवी शॉल के अनेक डिजाइन तैयार किए।

 

वर्तमान में भुट्टिको सालाना लगभग 13.50 करोड़ रुपये का करोबार कर रही है। प्रदेश सरकार ने बुनकरों को प्रोत्साहित करने तथा वस्त्र उत्पादन की अद्यतन तकनीकों को शामिल करने के लिए अनेक योजनाएं आरम्भ की हैं।

पूर्व में कुल्लू में साधारण शॉल तैयार की जाती थी, लेकिन जिला शिमला के रामपुर के बुशैहरी हस्तशिल्पियों के आगमन के उपरान्त अलंकृत हथकरघा उत्पाद अस्तित्व में आए। सामान्य कुल्लवी शॉल के दोनों ओर रेखांकित डिजाइन बनाए जाते हैं। इसके अलावा, कुल्लवी शॉल के किनारों में फूलों वाले डिजाइन भी बुने जा रहे हैं। प्रत्येक डिजाइन में एक से लेकर आठ रंग तक शामिल किए जाते हैं। पारम्परिक रूप से लाल, पीला, मजेंटा पिंक, हरा, संतरी, नीला, काला तथा सफेद रंग कढ़ाई के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। शॉल में सफेद, काला, प्राकृतिक स्लेटी या भूरे रंग का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में इन रंगों के बजाय पेस्टल रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

किन्नौरी शॉल अपनी बारीकियों तथा कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। अक्तूबर, 2010 में जिला किन्नौर के स्थानीय समुदाय द्वारा हाथ से बुनी जाने वाली ऊनी शॉल को वस्तु अधिनियम के भौगोलिक संकेतकों के तहत पेटेंट प्रदान किया गया। किन्नौरी शॉल के डिजाइन में मध्य एशिया का प्रभाव देखने को मिलता है। बुनकरी के इन विशिष्ट नमूनों की विशेष सांकेतिक तथा धार्मिक महत्ता है।

कुछ वस्त्र उद्योग समूह अपने कौशल और नई अवधारणाओं से हथकरघा उद्योग को नई ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। जिला मंडी की ऐसी ही एक युवा इंजीनियर श्रीमती अंशुल मल्होत्रा बुनकरों को प्रोत्साहित कर रही हैं।

गत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति सम्मान प्राप्त कर चुकी तथा सूरजकुंड मेले में दो बार कलानिधि पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती मल्होत्रा अपने दादा तथा पिता से विरासत में मिले हुनर से हथकरघा उद्योग को नए आयाम प्रदान कर रही हैं। वह बाजार की मांग के अनुसार नए डिजाइन सृजित करने के अपने हुनर का बखूबी उपयोग कर रही हैं। मंडी के अलावा लाहौल-स्पीति, कुल्लू तथा किन्नौर जिलों के बुनकर उनके साथ इस उद्योग में जुड़े हुए हैं। वह बाजार की मांग के अनुसार बुनकरों को प्रशिक्षण सुविधा भी प्रदान कर रही हैं। उनके द्वारा हिमाचल में डिजाइन की गई कानो साड़ी ने गत वर्ष खूब लोकप्रियता हासिल की तथा अनेक फैशन शो में भी प्रदर्शित की गई।

राज्य सरकार के प्रोत्साहन तथा बुनकरों के कौशल के बलबूते प्रदेश का हथकरघा उद्योग आत्मनिर्भर बनने, रोजगार सृजन तथा पारंपरिक कौशल को संजोए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

Get in Touch

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related Articles

spot_img

Latest Posts