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अभी भी कायम है देवता का कारज “बरलाज ” की परंपरा

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  • अभी भी कायम है देवता का कारज “बरलाज ” की परंपरा
  • दिवाली के दिन रात्रि भर चलता है रामगाथा का गुणगान
  • युवाओं में रहता है खासा उत्साह, सुबह के समय पूजा के साथ होता है समापन

आपकी खबर, शिमला।

शिमला जिला में विशेष रूप से मनाए जाने वाला “बरलाज” काफी प्रचलित है। युवाओं में इसको लेकर खासा उत्साह देखने को मिलता है।

इस अवसर पर ग्रामीण देवालयों में ढोल और नगाड़ों की थाप पर रामगाथा का गुणगान किया जाता है। “माल” और “दीपावली” पर रात्रि भर थांबड़ू लगाए जाते हैं, जिसमें लोक भजनों के साथ रात्रि जागरण का आयोजन जाता है। शिमला के महासू क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में विशेष रूप से इस पर्व की रात को करियालों का आयोजन किया जाता है। सुन्नी क्षेत्र सहित भज्जी में अभी भी इस तरह के आयोजन किए जाते हैं।

  • यह भी है मान्यता

बरलाज पूजन की रात्रि सभी औजारों को बांध दिये जाने की मान्यता भी है। इसके लिए मुदरें बांधी जाती हैं और लकड़ियों को जलाकर उसमें देवताओं का आह्वान कर खिलें और बताशे डाले जाते है। मुंदरों को जब तक बांधा होता है तब तक खेत खलिहान का कोई भी कार्य नहीं किया जाता है। दीवाली के अगले दिन मुझें खोलने के बाद ही हल व खेत के अन्य कार्य किए जाते हैं।

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